श्रीराम धुन में जब तक मन तू मगन न होगा।
जग जाल छूटने का तब तक जतन न होगा।
व्यापार श्रम कमाकर तू लाख साज सजले।
होता सुखी न जबतक संतोष धन न होगा।
तप यज्ञ होम पूजा व्रत और नेम करले।
सब व्यर्थ है जो मुझसे हरि का भजन न होगा।
संसार की घटा से क्या प्यास बुझ सकेगी?
चातक दृगों का जबतक घनश्याम घन न होगा।
तू तोल कर जो देखे आँखों का प्रेम मोती।
एक ‘बिदु’ पर त्रिलोकी भर का वजन न होगा।

By shayar

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