रे मुसाफिर जग जंजाल के बीच भटक रहा है,
स्वांस रत्न भरके इस तन में तूने खजाना पटका है।
इस जंगल के बीच
काम क्रोध अज्ञान लोभ मद इन चारों का खटका है।
रे मुसाफिर
समझ रहा तू गुलशन जिसको यह माया का जाल है।
रे मुसाफिर
योग रोग हिंसक पशु फिरते काल बाघ का झटका है।
रे मुसाफिर
विषय ‘बिन्दु’ मत समझ सुधा तू घूँट हलाहल घटका है।
रे मुसाफिर

रे मुसाफिर जग जंजाल के बीच भटक रहा है,
स्वांस रत्न भरके इस तन में तूने खजाना पटका है।
इस जंगल के बीच
काम क्रोध अज्ञान लोभ मद इन चारों का खटका है।
रे मुसाफिर
समझ रहा तू गुलशन जिसको यह माया का जाल है।
रे मुसाफिर
योग रोग हिंसक पशु फिरते काल बाघ का झटका है।
रे मुसाफिर
विषय ‘बिन्दु’ मत समझ सुधा तू घूँट हलाहल घटका है।
रे मुसाफिर

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *