रे मन मूर्ख कब तक जग में जीवन व्यर्थ बिताएगा।
राम नाम नहिं गाएगा तो अंत समय पछताएगा॥
जिस जग में तू आया है यह एक मुसाफिर खाना है।
सिर्फ़ रात भर रुकना इसमें सुबह सफ़र पर जाना है॥
लेकिन यह भी याद रहे श्वासों का पास खजाना है।
जिसे लूटने को कामादिक चोरों ने प्रण थाना है॥
माल लुटा बैठा तो घर जाकर का मुँह दिखलाएगा।
राम नाम नहिं गाएगा तो अंत समय पछताएगा॥
शुद्ध न की वासना हृदय की बुद्धि नहीं निर्मल की है।
झूठी दुनियादारी से क्या आशा मोक्ष के फल की है॥
तुझको क्या है खबर तेरी ज़िंदगी कितने पल की है।
जग के दूत घेर लेंगे तब तू क्या धर्म कमाएगा॥
राम नाम नहिं गाएगा तो अंत समय पछताएगा॥
पहुँच गुरु के पास ज्ञान का दीपक का उजियाला ले।
कंठी पहन कंठ जप की कर सुमिरन की माला ले॥
खाने को दिलदार रूप का रसमय मधुर निवाला ले।
पीने को प्रीतम प्यारे के प्रेमतत्व का प्याला ले॥
यह न किया तो, ‘बिन्दु’ नीर आँखों से बहाएगा।
राम नाम नहिं गाएगा तो अंत समय पछताएगा॥