ये अर्ज साँवले सरकार हम सुनते हैं।
कि नैन आपके दीनों पै जुल्म ढाते हैं॥
न पूछते हैं किसी से और न कुछ बताते हैं।
जिधर भी दिल को ये पाते हैं घर बनाते हैं॥
बनाके घर ये खिताफत का रंग लाते हैं।
खयाले दिल को अपनी तरफ मिलाते हैं।
खयाले दिल से सभी ये भेद घर का पाते हैं।
तो दिल चुराके न जाने किधर को जाते हैं॥
बयान सब हमारे सच है कसम खाते हैं।
ये अश्रु ‘बिन्दु’ कि गंगाजली उठाते हैं।

By shayar

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