यह तमन्ना है कि घनश्याम का शैदा बन जाऊँ।
उनसे मिलने की खातिर न जाने क्या-क्या बन जाऊँ॥
ज़िस्म जल जाए जो विरहाग्नि के शोलों में कहीं।
शौक से राह में उनकी मैं खाकसा बन जाऊँ॥
जान घुट जाए जुदाई के खरल में जो कहीं।
ऐसा पिस जाऊँ कि मैं आँखों का सुरमा बन जाऊँ॥
दम निकल जाए जो उनकी तसव्वुर में ही कहीं।
बस फिर उस साँवली सूरत का ही नक्शा बन जाऊँ॥
‘बिन्दु’ वो जो अपना हमशक्ल बना ले मुझको।
ऐसा कुछ हो जाए कि मैं यमुना ही बन जाऊँ॥