पाप लाखों के जो तू हर गया बंशी वाले।
तो मेरे पाप से क्यों डर गया बंशी वाले।
डूबने वाला हूँ भव सिन्धु में कुछ देर नहीं।
क्योंकि पापों का घड़ा भर गया बंशी वाले।
नाम पर तेरे न हो कैसे भरोसा मुझको।
जब अजामिल सा अधम तर गया बंशी वाले।
इसलिए भेंट में देता हूँ अश्रु ‘बिन्दु” तुझे।
क़द्र इनकी तू भी कर गया बंशी वाले।