दरश दिखला दो राजिब नैन।
पड़त नहीं अब एक घड़ी पल चैन॥
लगी है जब से लगन दिल ही और हो बैठा।
न भूख प्यास है जीने से हाथ ढो बैठा॥
जो एक बार रूप माधुरी को पी जाऊँ।
तो इसमें शक नहीं मरता हुआ भी जी जाऊँ॥
बहता तन बिरहानल दिल रेन॥ दरश…
जो प्राण जाना हो चाहे तो इस तरफ जायें।
कि मेरे सामने करुनानिधान आ जायें॥
कहूं मैं उनसे कि सर्वस्व दे चुका तुमको।
वो कह दें कि शरण ले चुका तुमको।
सुन ये रस ‘बिन्दु’ मृदु भरे बैन। दरश…

By shayar

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