तूने किया न हरि का ध्यान जग में जन्म व्यर्थ ही बीता।
पाया सुख सम्पत्ति सम्मान, बजते डंके और निशान॥
लेकिन सब हैं धूल समान यदि तू रटे न सीता-राम।
करता है वेदान्त बखान, बनता है शिक्षक विद्वान॥
पर यह सब झूठा ज्ञान जब तक काम-क्रोध को नहीं जीता।
रचता है तू जाल-विधान, गृह में खिंचती कलह कमान॥
फिर भी रखता वह अभिमान, पढ़ता है रामायण गीता।
थान जप तप मत हठ ठान, जो है साधन कठिन महान।
जिसमे सहज मिलें भगवान ऐसा प्रेम ‘बिन्दु’ नहीं पीता॥