तुम्हारी कृपा है तो दुश्मन का डर क्या।
तुम्हारे गुलामों को खोफो खतर क्या।
शरणों में जो चरणों की सिर आ चुका है।
खिलाफ उसके कट जाएगा सिर क्या।
दया की नज़र से जो तुम देखते हो।
करेगी किसी को भला बदनज़र क्या।
बनाते हो बिगड़ी हुई बात जब तुम।
बिगाड़ेगा नाचीज कमतर बसर क्या।
अनाथों के दृग ‘बिन्दु’ पर तुम न रूठो।
तो कर लेगा सारा जहाँ रूठकर क्या।

By shayar

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