जीवन को मैंने सौंप दिया अब सब भार तुम्हारे हाथों में,
उद्धार पतन अब सब मेरा है सरकार तुम्हारे हाथों में।
हम तुमको कभी नहीं भजते फिर भी तुम हमको नहीं तजते,
अपकार हमारे हाथों में उपकार तुम्हारे हाथों में।
हम में तुम में भेद यही हम नर हैं तुम नारायण हो,
हम हैं संसार के हाथों में संसार तुम्हारे हाथों में।
कल्पना बनाया करती है इस सेतु विरह के सागर पर,
जिससे हम पहुँचा करते हैं उस पार तुम्हारे हाथों में।
दृग ‘बिन्दु’ कर रहे हैं भगवन दृग नाव विरह सागर में है,
मंझधार बीच फँसे हैं हम और है पतवार तुम्हारे हाथों में॥