जिस पर ये दिल फ़िदा है दिलदार वो है निराला।
हर दिल अजीज भी है हर दिल का है उजाला॥
क्या है वो क्या नहीं झगड़ा दूर हो तब।
होता है जब वो जाहिर परदे में छिप्नेवाला॥
खम्भे से मूर्ती से जल सिन्धु से जमीं से।
पलभर में निकल आया जिसने जहाँ निकला।
बंजरों में पहाड़ों में कतरों में बादलों में।
अदना है ‘बिन्दु” से भी हैं सिन्धु से भी आला।

By shayar

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