जिससे ब्रजमंडल का मन गोपाल मनमोहन में है।
उस मधुर वात्सल्य की झांकी हमारे मन में है।
योगियों का तत्व ब्रम्हानंद जी वेदान्त का।
खेलता फिरता यशोदा नन्द के आंगन में है।
है अचम्भा सृष्टि के करतार का भी कर कमल।
चोर बनकर गोपियों के दूध दधि माखन में है।
एक यह कौतुक अनौखा देखिये ब्रजराज का।
विश्व जिससे है बंधा ऊखल के बंधन में है।
जग में ब्रज धूल गोरस ‘बिन्दु’ है मुखचन्द्र पर।
शम्भु सा योगीश भी बलिहार इस दर्शन में है

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *