जय जगपति, जय जनपति, रघुकुलपति राम।
शोभित श्रीसिय समेत, छविधर अभिराम॥
जय कृपाल, प्रणतपाल, दायक विश्राम।
घन सम तन द्युति ललाम, सुगति शांति धाम॥
भूमि भार, हार्न हार, जय अंनत नाम।
त्रिभुवन विख्यात विमल पावन गुण ग्राम॥
नेति नेति गावत ऋग, यजु, अथर्व, साम।
पूर्ण ‘बिन्दु’ पूर्ण सिन्धु परम पूर्ण काम॥