घनश्याम तुझसे अर्ज है कुछ ऐसा मेरा सुधार हो।
इस तन को तेरी तलाश हो इस मन में तेरा ही प्यार हो॥
तेरी चाह में ही चढ़ा रहूँ तेरे द्वार पर ही पड़ा रहूँ।
कदमों पाई तेरे अड़ा रहूँ चाहे कष्ट मुझपे हजार हो॥
तेरी याद दिल में किया करूँ तुझे धन्यवाद दिया करूँ।
तेरा ही नाम लिया करूँ, ये करम मुझ पे उधार हो॥
मेरे ध्यान में तू फँसा रहे रग-रग में तू ही बसा रहे।
अनुराग ही वो नशा रहे दिन रात का न शुमार हो॥
चले प्राण तन से जो ऊबकर अहसां ये मुझपे खूबकर।
तेरे प्रेम सिन्धु में डूबकर भव सिन्धु ‘बिन्दु’ पार हो॥

By shayar

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