गजब का दावा है पापियों का अजीब जिद पर सम्हल रहे हैं।
उन्हीं से झगड़े पर तुले हैं जिनसे त्रयलोक पल रहे हैं॥
वे कह रहे हैं कि श्यामसुन्दर अधम उधारण बने कहाँ से,
ख़िताब हमसे नाथ लेकर हमी से फिर क्यों बदल रहे हैं।
गरीब अधमों के तुम हो प्रेमी ये बात मुद्दत से सुन रहे हैं,
इसी भरोसे पै तुमसे भगवन् लड़ रहे हैं मचल रहे हैं।
हमारा प्रण है कि पाप करलें तुम्हारा प्रण है कि पाप हरलें,
तुम अपने वादे से टल रहे हो हम अपने वादे पर चल रहे हैं।
नहीं है आँखों कि अश्रुधारा तुम्हारी उल्फ़त का ये असर है,
पड़े वे पापों के दिल में छले जो ‘बिन्दु’ बनकर निकल रहे हैं।

By shayar

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