कराल कलिकाल में जो तेरा,
न हरि के सुमिरन से प्यार होगा।
तो फिर बता दे किस तरह—
अपार भव सिन्धु पार होगा।
विषय तथा खाना और सोना,
सुखों में हँसना दुखों में रोना।
यही रही ख़ासियत तो
पशुओं में तेरा शुमार होगा।
अभी तो माना कि मोह प्यालों-
को पी के तू अलमस्त हो रहा,
मगर तू पछताएगा कि जिस दिन,
नशे का आख़िर उतर होगा।
वो बागवाँ अपने इस चमन में,
खिला ख़ुद बनके गुल हज़ारों।
बता दे क्या पसंद तुझको,
या गुल की ख़ुशबू या ख़्वार होगा।
जो रूप बरसाएगा तड़प कर,
वो आबे रहमत के ‘बिन्दु’ एकदिन।
जो सामने उसके ख़ुद गुनाहों-
से अपने आप तू शर्मसार होगा॥