अड़ा हूँ आज इस दिल पै कि कुछ पा के हटूँ।
या तो हार जाऊँ या ख़ुद आपको हरा के हटूँ।
मुराद मन कि जो पाऊँ तो यश बढ़के हटूँ।
नहीं तो आपकी घर-घर में हँसी करा के हटूँ।
तजुर्बा आपकी बाहों का कुछ उठाके हटूँ।
या करामत मैं आँहों कि कुछ दिखा के हटूँ।
या दीनबंधु से इकरार ही लिखाके हटूँ।
या अश्रु ‘बिन्दु” में यह नाम ही डुबोके हटूँ।