आंख लगाई
आंख लगाई तुमसे जब से हमने चैन न पाई। छल जो, प्राणों का सम्बल हुआ,…
Read Moreदीप जलता रहा, हवा चलती रही; नीर पलता रहा, बर्फ गलती रही। जिस तरह आग…
Read Moreतुम जो सुथरे पथ उतरे हो, सुमन खिले, पराग बिखरे, ओ! ज्योतिश्छाय केश-मुख वाली, तरुणी…
Read Moreजिनकी नहीं मानी कान रही उनकी भी जी की। जोबन की आन-बान तभी दुनिया की…
Read Moreसोईं अँखियाँ: तुम्हें खोजकर बाहर, हारीं सखियाँ। तिमिरवरण हुईं इसलिये पलकों के द्वार दे दिये…
Read Moreतिमिरदारण मिहिर दरसो। ज्योति के कर अन्ध कारा- गार जग का सजग परसो। खो गया…
Read Moreसाधो मग डगमग पग, तमस्तरण जागे जग। शाप-शयन सो-सोकर, हुए शीर्ण खो-खोकर, अनवलाप रो-रोकर हुए…
Read Moreछांह न छोड़ी, तेरे पथ से उसने आस न तोड़ी। शाख़-शाख़ पर सुमन खिले, हवा-हवा…
Read Moreलगी लगन, जगे नयन; हटे दोष, छुटा अयन; दुर्मिल जो कुछ ऊर्मिल मिल-मिलकर हुआ अखिल,…
Read Moreआशा आशा मरे लोग देश के हरे! देख पड़ा है जहाँ, सभी झूठ है वहाँ,…
Read More