प्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल
प्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल परा-पथ पाथेय पुष्कल। गणित अगणित नूपुरों के, ध्वनित सुन्दर स्वर सुरों…
Read Moreप्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल परा-पथ पाथेय पुष्कल। गणित अगणित नूपुरों के, ध्वनित सुन्दर स्वर सुरों…
Read Moreपैर उठे, हवा चली। उर-उर की खिली कली। शाख-शाख तनी तान, विपिन-विपिन खिले गान, खिंचे…
Read Moreऔर न अब भरमाओ, पौर आओ, तुम आओ! जी की जो तुमसे चटकी है, बुद्धि-शुद्धि…
Read Moreपार संसार के, विश्व के हार के, दुरित संभार के नाश हो क्षार के। सविध…
Read Moreसरल तार, नवल गान, नव-नव स्वर के वितान। जैसे नव ॠतु, नव कलि, आकुल नव-नव…
Read Moreरंगभरी किस अंग भरी हो? गातहरी किस हाथ बरी हो? जीवन के जागरण-शयन की, श्याम-अरुण-सित-तरुण-नयन…
Read Moreचंग चढ़ी थी हमारी, तुम्हारी डोर न टूटी। आँख लगी जो हमारी, तुम्हारी कोर न…
Read Moreचंग चढ़ी थी हमारी, तुम्हारी डोर न टूटी। आँख लगी जो हमारी, तुम्हारी कोर न…
Read Moreदो सदा सत्संग मुझको। अनृत से पीछा छुटे, तन हो अमृत का रंग मुझको। अशन-व्यसन…
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