निविड़-विपिन, पथ अराल;
निविड़-विपिन, पथ अराल; भरे हिंस्र जन्तु-व्याल। मारे कर अन्धकार, बढ़ता है अनिर्वार, द्रुम-वितान, नहीं पार,…
Read Moreनिविड़-विपिन, पथ अराल; भरे हिंस्र जन्तु-व्याल। मारे कर अन्धकार, बढ़ता है अनिर्वार, द्रुम-वितान, नहीं पार,…
Read Moreसुरतरु वर शाखा खिली पुष्प-भाषा। मीलित नयनों जपकर तन से क्षण-क्षण तपकर तनु के अनुताप…
Read Moreगिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस,…
Read Moreधीरे धीरे हँसकर आईं प्राणों की जर्जर परछाईं। छाया-पथ घनतर से घनतम, होता जो गया…
Read Moreबाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर…
Read Moreकेशर की, कलि की पिचकारी पात-पात की गात संवारी। राग-पराग-कपोल किये हैं, लाल-गुलाल अमोल लिये…
Read Moreआज प्रथम गाई पिक पंचम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मस्त प्रवाह, कुसुम तरु फूले,…
Read Moreफूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं। होली मची ठौर-ठौर, सभी बन्धन छूटे…
Read Moreदे न गये बचने की साँस, आस ले गये। रह-रहकर मारे पर यौवन के ज्वर…
Read Moreअलि की गूँज चली द्रुम कुँजों। मधु के फूटे अधर-अधर धर। भरकर मुदे प्रथम गुंजित-स्वर…
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