नव तन कनक-किरण फूटी है।
नव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय,…
Read Moreनव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय,…
Read Moreघन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी हैं…
Read Moreमानव का मन शान्त करो हे! काम, क्रोध, मद, लोभ दम्भ से जीवन को एकान्त…
Read Moreतुम ही हुए रखवाल तो उसका कौन न होगा? फूली-फली तरु-डाल तो उसका कौन न…
Read Moreखुल कर गिरती है जो, उड़ती फिरती है। ऐसी ही एक बात चलती है, घात…
Read Moreतन, मन, धन वारे हैं; परम-रमण, पाप-शमन, स्थावर-जंगम-जीवन; उद्दीपन, सन्दीपन, सुनयन रतनारे हैं। उनके वर…
Read Moreवे कह जो गये कल आने को, सखि, बीत गये कितने कल्पों। खग-पांख-मढी मृग-आँख लगी,…
Read Moreहरि का मन से गुणगान करो, तुम और गुमान करो, न करो। स्वर-गंगा का जल…
Read Moreआँख बचाते हो तो क्या आते हो? काम हमारा बिगड़ गया देखा रूप जब कभी…
Read Moreवेदना बनी; मेरी अवनी। कठिन-कठिन हुए मृदुल पद-कमल विपद संकल भूमि हुई शयन-तुमुल कण्टकों घनी।…
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