उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार।
उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार। समझो वर निर्जर रण; करो बार बार स्मरण, निराकार करण-हरण, शरण, मरणपार। रवि…
Read Moreउनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार। समझो वर निर्जर रण; करो बार बार स्मरण, निराकार करण-हरण, शरण, मरणपार। रवि…
Read Moreजननी मोह की रजनी पार कर गई अवनी। तोरण-तोरण साजे, मंगल-बाजे बाजे, जन-गण-जीवन राजे, महिलाएँ…
Read Moreअनमिल-अनमिल मिलते प्राण, गीत तो खिलते। उड़ती हैं छुट-छुटकर आँखें मन के नभ पर और…
Read Moreमुदे नयन, मिले प्राण, हो गया निशावसान। जगते-जग के कलरव सोये, उर के उत्सव मन्द…
Read Moreभजन कर हरि के चरण, मन! पार कर मायावरण, मन! कलुष के कर से गिरे…
Read Moreनील जलधि जल, नील गगन-तल, नील कमल-दल, नील नयन द्वय। नील मॄत्ति पर नील मृत्यु-शर,…
Read Moreक्या सुनाया गीत, कोयल! समय के समधीत, कोयल! मंजरित हैं कुंज, कानन, जानपद के पुंज-आनन,…
Read Moreहंसो अधर-धरी हंसी, बसो प्राण-प्राण-बसी। करुणा के रस ऊर्वर कर दो ऊसर-ऊसर दुख की सन्ध्या…
Read Moreकठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार? ऊर्मि का पाथार कैसे करे पार? अयुत भंगुर तरंगों टूटता…
Read Moreतरणि तार दो अपर पार को खे-खेकर थके हाथ, कोई भी नहीं साथ, श्रम-सीकर-भरा माथ,…
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