हे जननि, तुम तपश्चरिता,
हे जननि, तुम तपश्चरिता, जगत की गति, सुमति भरिता। कामना के हाथ थक कर रह…
Read Moreहे जननि, तुम तपश्चरिता, जगत की गति, सुमति भरिता। कामना के हाथ थक कर रह…
Read Moreमुक्तादल जल बरसो, बादल, सरिसर कलकलसरसो बादल! शिखि के विशिख चपल नर्तन वन, भरे कुंजद्रुम…
Read Moreश्याम-श्यामा के युगल पद, कोकनद मन के विनिर्मद। हृदय के चन्दन सुखाशय, नयन के वन्दन…
Read Moreकाम के छवि-धाम, शमन प्रशमन राम! सिन्धुरा के सीस सिन्दूर, जगदीश, मानव सहित-कीश, सीता-सती-नाम। अरि-दल-दलन-कारि,…
Read Moreचरण गहे थे, मौन रहे थे, विनय-वचन बहु-रचन कहे थे। भक्ति-आंसुओं पद पखार कर, नयन-ज्योति…
Read Moreविपद-भय-निवारण करेगा वही सुन, उसी का ज्ञान है, ध्यान है मान-गुन। वेग चल, वेग चल,…
Read Moreसाध पुरी, फिरी धुरी। छुटी गैल-छैल-छुरी। अपने वश हैं सपने, सुकर बने जो न बने,…
Read Moreपतित हुआ हूँ भव से तार; दुस्तर दव से कर उद्धार। तू इंगित से विश्व…
Read Moreपतित पावनी, गंगे! निर्मल-जल-कल-रंगे! कनकाचल-विमल-धुली, शत-जनपद-प्रगद-खुली, मदन-मद न कभी तुली लता-वारि-भ्रू-भंगे! सुर-नर-मुनि-असुर-प्रसर स्तव रव-बहु गीत-विहर…
Read Moreकनक कसौटी पर कढ़ आया स्वच्छ सलिल पर कर की छाया। मान गये जैसे सुनकर…
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