जय तुम्हारी देख भी ली
जय तुम्हारी देख भी ली रूप की गुण की, रसीली । वृद्ध हूँ मैं, वृद्ध…
Read Moreजय तुम्हारी देख भी ली रूप की गुण की, रसीली । वृद्ध हूँ मैं, वृद्ध…
Read Moreऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र, माझ मान मेघ मन्द्र । क्षण-क्षण विद्युत प्रकाश, गुरु गर्जन मधुर…
Read Moreहारता है मेरा मन विश्व के समर में जब कलरव में मौन ज्यों शान्ति के…
Read Moreअशरण-शरण राम, काम के छवि-धाम । ऋषि-मुनि-मनोहंस, रवि-वंश-अवतंस, कर्मरत निश्शंस, पूरो मनस्काम । जानकी-मनोरम, नायक…
Read Moreभग्न तन, रुग्न मन, जीवन विषण्ण वन । क्षीण क्षण-क्षण देह, जीर्ण सज्जित गेह, घिर…
Read Moreनील नयन, नील पलक; नील वदन, नील झलक । नील-कमल-अमल-हास केवल रवि-रजत भास नील-नील आस-पास…
Read Moreसुख का दिन डूबे डूबे जाए । तुमसे न सहज मन ऊब जाए । खुल…
Read Moreहे मानस के सकाल ! छाया के अन्तराल ! रवि के, शशि के प्रकाश, अम्बर…
Read Moreदुखता रहता है अब जीवन; पतझड़ का जैसा वन-उपवन । झर-झर कर जितने पत्र नवल…
Read Moreअरघान की फैल, मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल। लाले पड़े हैं, हजारों जवानों कि…
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