सखि वसन्त आया ।
सखि वसन्त आया । भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया । किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली…
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Read Moreसूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” » अपरा » Script दिवसावसान का समय – मेघमय आसमान से उतर…
Read Moreसखि, वसन्त आया भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय…
Read Moreजागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती…
Read Moreविजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी–स्नेह-स्वप्न-मग्न– अमल-कोमल-तनु तरुणी–जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल–पत्रांक में, वासन्ती…
Read Moreफिर बेले में कलियाँ आईं । डालों की अलियाँ मुसकाईं । सींचे बिना रहे जो…
Read Moreधिक मद, गरजे बदरवा, चमकि बिजुलि डरपावे, सुहावे सघन झर, नरवा कगरवा-कगरवा ।
Read Moreसमझे मनोहारि वरण जो हो सके, उपजे बिना वारि के तिन न ढूह से ।…
Read Moreपत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है, आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में, अंधकार…
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