कौन तम के पार ?
कौन तम के पार ?– (रे, कह) अखिल पल के स्रोत, जल-जग, गगन घन-घन-धार–(रे, कह)…
Read Moreकौन तम के पार ?– (रे, कह) अखिल पल के स्रोत, जल-जग, गगन घन-घन-धार–(रे, कह)…
Read Moreरे, कुछ न हुआ, तो क्या ? जग धोका, तो रो क्या ? सब छाया…
Read Moreमैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन, मैं हूँ केवल पतदल–आसन, तुम…
Read Moreतिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया- जग के दग्ध हृदय पर…
Read Moreजीवन चिरकालिक क्रन्दन । मेरा अन्तर वज्रकठोर, देना जी भरसक झकझोर, मेरे दुख की गहन…
Read Moreविजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी–स्नेह-स्वप्न-मग्न– अमल- कोमल -तनु तरुणी–जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल–पत्रांक…
Read Moreरँग गई पग-पग धन्य धरा,— हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द…
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