बुझे तृष्णाशा-विषानल
बुझे तृष्णाशा-विषानल झरे भाषा अमृत-निर्झर, उमड़ प्राणों से गहनतर छा गगन लें अवनि के स्वर…
Read Moreबुझे तृष्णाशा-विषानल झरे भाषा अमृत-निर्झर, उमड़ प्राणों से गहनतर छा गगन लें अवनि के स्वर…
Read Moreप्रात तव द्वार पर, आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर । लगे जो उपल…
Read Moreभारति, जय, विजयकरे ! कनक-शस्य-कमलधरे ! लंका पदतल शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल, धोता-शुचि चरण युगल स्तव…
Read Moreजग का एक देखा तार । कंठ अगणित, देह सप्तक, मधुर-स्वर झंकार । बहु सुमन,…
Read Moreबन्दूँ, पद सुंदर तव, छंद नवल स्वर-गौरव । जननि, जनक-जननि-जननि, जन्मभूमि-भाषे ! जागो, नव अम्बर-भर,…
Read Moreवर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे !…
Read Moreअनगिनित आ गए शरण में जन, जननि,– सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि ! स्नेह से पंक-उर…
Read Moreरश्मि, नभ-नील-पर, सतत शत रूप धर, विश्व-छवि में उतर, लघु-कर करो चयन ! प्रतनु, शरदिन्दु-वर,…
Read Moreदे, मैं करूँ वरण जननि, दुखहरण पद-राग-रंजित मरण । भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न…
Read Moreअस्ताचल रवि, जल छलछल-छवि, स्तब्ध विश्वकवि, जीवन उन्मन; मंद पवन बहती सुधि रह-रह परिमल की…
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