मौन
बैठ लें कुछ देर, आओ,एक पथ के पथिक-से प्रिय, अंत और अनन्त के, तम-गहन-जीवन घेर।…
Read Moreराजे ने अपनी रखवाली की; किला बनाकर रहा; बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । चापलूस कितने सामन्त…
Read Moreसह जाते हो उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, अन्तिम…
Read Moreतोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा पत्थर, की निकलो फिर, गंगा-जल-धारा! गृह-गृह की पार्वती! पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को…
Read Moreमरण को जिसने वरा है उसी का जीवन भरा है परा भी उसकी, उसी के…
Read Moreगहन है यह अण्ध कारा; स्वार्थ के अवगुण्ठनों से हुआ है लुण्ठन हमारा । खड़ी…
Read Moreस्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है । आम की यह…
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