मरा हूँ हजार मरण
मरा हूँ हजार मरण पाई तब चरण-शरण । फैला जो तिमिर जाल कट-कटकर रहा काल,…
Read Moreमरा हूँ हजार मरण पाई तब चरण-शरण । फैला जो तिमिर जाल कट-कटकर रहा काल,…
Read Moreपल्लव – पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली, बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर…
Read Moreअनगिनित आ गये शरण में जन, जननि- सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि! स्नेह से पंक –…
Read Moreगहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा। खड़ी है दीवार…
Read Moreबार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो । मेरे…
Read Moreभारति, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे! लंका पदतल-शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल धोता शुचि चरण-युगल स्तव कर…
Read Moreनहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हुए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने…
Read Moreदिवसावसान का समय- मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे,…
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