तुम और मैं
तुम तुंग – हिमालय – श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। तुम विमल हृदय उच्छवास और…
Read Moreतुम तुंग – हिमालय – श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। तुम विमल हृदय उच्छवास और…
Read Moreटूटें सकल बन्ध कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध। रुद्ध जो धार रे शिखर –…
Read Moreवर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक भ्रमर-गुंज भर…
Read Moreएक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी, पूछा, “मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक भक्त…
Read Moreपत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है, आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में, अंधकार…
Read Moreबाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर…
Read Moreभेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है । देश को मिल जाए…
Read Moreप्रिय) यामिनी जागी। अलस पंकज-दृग अरुण-मुख तरुण-अनुरागी। खुले केश अशेष शोभा भर रहे, पृष्ठ-ग्रीवा-बाहु-उर पर…
Read Moreआज प्रथम गाई पिक पञ्चम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मरुत-प्रवाह, कुसुम-तरु फूले, बौर-बौर पर…
Read Moreमद – भरे ये नलिन – नयनमलीन हैं; अल्प – जल में या विकल लघु…
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