फ़रिश्ते भी पहुँच सकते नहीं वो है मकाँ अपना
फ़रिश्ते भी पहुँच सकते नहीं वो है मकाँ अपना ठिकाना ढूँडे दौर-ए-ज़मीं-ओ-आसमाँ अपना ख़ुदा जब्बार…
Read Moreफ़रिश्ते भी पहुँच सकते नहीं वो है मकाँ अपना ठिकाना ढूँडे दौर-ए-ज़मीं-ओ-आसमाँ अपना ख़ुदा जब्बार…
Read Moreयूँ तसव्वुर में बसर रात किया करते थे लब ने खुलते थे मगर बात किया…
Read Moreपर्दा पड़ा हुआ था ख़ुदी न उठा दिया अपनी ही मआरिफ़त ने तुम्हारा पता दिया…
Read Moreवा गर्म आँसुओं की रवानी तमाम रात देखा मआल-ए-सोज़-ए-निहानी तमाम रात मेरी ही तरह आप…
Read Moreकली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है मगर बीमार होटों पर हँसी मालूम होती…
Read Moreऐसी नींद आई कि फिर मौत को प्यार आ ही गया रात भर जागने वाले…
Read Moreकब से इस दुनिया का सरगम-ए-सफ़र पाता हूँ मैं फिर भी हर मंज़िल को पहली…
Read Moreज़िंदगी कौन सी मंज़िल पे रूकी है आ कर आगे चलती भी नहीं राह बदलती…
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