मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, मातृ-भू शत-शत बार…
Read Moreमातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, मातृ-भू शत-शत बार…
Read Moreहम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले मस्ती का आलम साथ चला,…
Read Moreआज मानव का सुनहला प्रात है, आज विस्मृत का मृदुल आघात है; आज अलसित और…
Read Moreबस इतना–अब चलना होगा फिर अपनी-अपनी राह हमें। कल ले आई थी खींच, आज ले…
Read Moreपतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी; जो कहलाता है आज रुदन,…
Read Moreमैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ अपने प्रकाश की रेखा तम के तट पर अंकित…
Read Moreतुम अपनी हो, जग अपना है किसका किस पर अधिकार प्रिये फिर दुविधा का क्या…
Read Moreतुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी तुम छवि की परिणीता-सी, अपनी बेसुध मादकता में भूली-सी, भयभीता सी…
Read Moreआज मानव का सुनहला प्रात है, आज विस्मृत का मृदुल आघात है; आज अलसित और…
Read Moreक्या जाग रही होगी तुम भी? निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना यह व्यापक अंधकार, मेरे…
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