ललकार
यह मुक्त-केतु हाँ विजय-केतु चिर-उन्नत! कर सकता कौन इसे साहस कर अवनत? मैं लिये कृपाण…
Read Moreयह मुक्त-केतु हाँ विजय-केतु चिर-उन्नत! कर सकता कौन इसे साहस कर अवनत? मैं लिये कृपाण…
Read Moreअरे निर्दय-रक्ताक्त-पिशाच! कहाँ तेरे ज़हरीले-बाण? कहाँ वह तेरा अग्नि-त्रिशूल? कहाँ वे नारकीय यम-दंड? तड़पती आज…
Read Moreहोता अधीर नग-श्मशान छिपता भय से रवि आसमान! उठता झट खौल समुद्र घोर रुकता झंझानिल…
Read Moreअये बलवीर अग्नि के लाल! अये कौरव-कुल-काल-कराल! अये शंकर के तृतिय-नयन! अये अंबुधि के गुरु-गर्जन!…
Read Moreदे द्वार खोल दारूणतर मेरे अवरूद्ध हृदय का; अंतर्जग गुंजित कर दे पढ़ अक्षय-मंत्र विजय…
Read Moreकरूँगा उथल-पुथल क्षण में! सिंह-समान दहाडू़ँगा नवयुग के इस समरांगण में! प्रलयंकर मैं हूँ विराट…
Read Moreउज्ज्वल-वल्कल-वसन फेंक कर धारण कर ले रक्ताम्बर! आज प्रकट कर माँ! अपनी लोहित असि का…
Read Moreअरे ओ, मतवाला यौवन! अरे! उच्छृंखल! वीर-मदन! अग्नि की लघु-लहरों में बैठ भूल जा, उद्यानों…
Read More