नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी ख़ामोशी गुफ़्तगू है, बेज़ुबानी है ज़बाँ मेरी ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसी…
Read Moreनहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी ख़ामोशी गुफ़्तगू है, बेज़ुबानी है ज़बाँ मेरी ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसी…
Read Moreमोहब्बत क जुनूँ बाक़ी नहीं है मुसलमानों में ख़ून बाक़ी नहीं है सफ़ें कज, दिल…
Read Moreमजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला…
Read Moreअनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक़ कौन-सी बस्ती के यारब रहने…
Read Moreक्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ और असीरे-हल्क़ा-ए-दामे-हवा क्योंकर हुआ जाए हैरत…
Read Moreजब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही ‘अत्तार’ हो ‘रूमी’ हो ‘राज़ी’…
Read Moreख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है कि मैं इस फ़िक्र में रहता…
Read Moreचमक तेरी अयाँ बिजली में आतिश में शरारे में झलक तेरी हवेदा चाँद में सूरज…
Read Moreलब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी…
Read Moreउट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो गर्माओ ग़ुलामों…
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