रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से।
रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से। चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी…
Read Moreरहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से। चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी…
Read Moreमुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र। तुम्हें ख़ाकसारों…
Read Moreइक जाम-ए-बोसीदा हस्ती और रूह अज़ल से सौदाई। यह तंग लिबास न यूँ चढ़ता ख़ुद…
Read Moreक़फ़स से ठोकरें खाती नज़र जिस नख़्ल तक पहुँची। उसी पर लेके इक तिनका बिनाए-आशियाँ…
Read Moreअब मुझ को फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या? वो मुँह पे कह गए–“यह मर्ज़ लाइलाज…
Read Moreखुद चले आओ या बुला भेजो। रात अकेले बसर नहीं होती॥ हम ख़ुदाई में हो…
Read Moreतुम हो कि एक तर्ज़े-सितम पर नहीं क़रार। हम हैं कि पायेबन्द हरेक इम्तहाँ के…
Read Moreमुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं। हाँ आप इक ऐसे हैं…
Read Moreजो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं। सर को दो-दो पहर यह धुनते हैं॥ कै़द में माजरा-ए-तनहाई।…
Read Moreहिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया। वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर…
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