(1)
यूँ मुतमइन1 आये हैं खाकर जिगर पै चोट,
जैसे वहाँ गये थे इसी मुद्दआ के साथ।

(2)
रहबर या तो रहजन2 निकले या हैं अपने आप में गुम,
काफले वाले किससे पूछें किस मंजिल तक जाना है।

(3)
वफा पर मिटने वाले जान की परवा नहीं करते,
वह इस बाजार में सूदो-जियो3 देखा नहीं करते।

(4)
वह मर्द नहीं जो डर जाये, माहौल के खूनी खंजर4 से,
उस हाल में जीना लाजिम है जिस हाल में जीना मुश्किल है।

(5)
गुल भी हैं गुलिस्ताँ भी है मौजूद,
इक फकत आशियाँ नहीं मिलता।

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