काहे लकडा घांस कटावे । खोद हि जुमीन मठ बनावे ॥१॥
देवलवासी तरवरछाया । घरघर माई खपरिबसमाया॥ध्रु.॥
कां छांडियें भार फेरे सीर भागें । मायाको दुःख मिटलिये अंगें॥२॥
कहे तुका तुम सुनो हो सिध्दा । रामबिना और झुटा कछु धंदा ॥३॥
काहे लकडा घांस कटावे । खोद हि जुमीन मठ बनावे ॥१॥
देवलवासी तरवरछाया । घरघर माई खपरिबसमाया॥ध्रु.॥
कां छांडियें भार फेरे सीर भागें । मायाको दुःख मिटलिये अंगें॥२॥
कहे तुका तुम सुनो हो सिध्दा । रामबिना और झुटा कछु धंदा ॥३॥