आज देवियों को करता मन भूरि रे नमन
चिन्मयि सृजन शक्तियाँ जो करतीं जगत सृजन!
माहेश्वरी महेश्वर के संदेश को वहन
लक्ष्मी श्री सौन्दर्य विभव को करती वितरण!
सरस्वती विस्तार सूक्ष्म करती संपादन
काली भरती प्रगति, विघ्न कर निखिल निवारण!
आभा देही अखिल देवताओं की माता,
यह अभिन्न अविभाज्य, एकता की चिर ज्ञाता!
इसके सुत आदित्य, सत्य से युक्त निरंतर,
भेद बुद्धि दिति के सुत दैत्य, अहम्मय तमः चर!
आदि सत्य का सक्रिय बोध इला देती नित,
सरस्वती चिर सत्य स्रोत जो हृदय में स्फुरित!
मही भारती वाणी—जिसका ज्ञान अपरिमित,
सद् का देती बोध दक्षिणा, हवि कर वितरित!
शर्मा है प्रेरणा श्वान जो अचित् में अमर,
चित् का छिपा प्रकाश ढूँढ लाता चिर भास्कर!
देवों की शक्तियाँ देवियाँ रे चिर पूजित,
जिनसे मानव का प्रच्छन्न चित्त नित ज्योतित!