सोज़ाँ ग़मे-जावेद से दिल भी है जिगर भी।
इक आह का शोला कि इधर भी है उधर भी॥
वो अंजुमने-नाज़ है और रंगे-तग़ाफ़ुल।
याँ मरहलये-आह भी, अन्दोहे-असर भी॥
वो शमअ़ नहीं है, कि हों इक रात के मेहमाँ।
जलते हैं तो बुझते नहीं हम वक़्ते-सहर भी॥
जीने के मज़े देख लिए तेरी बदौलत।
अब ओ दिले-नाकामे-तमन्ना कहीं मर भी॥
अपनी शबे-हिजराँ में नहीं दख़ले-तग़ैय्युर।
बातिल है यहाँ फ़लसफ़ये शामो-सहर भी॥
सुनता हूँ कि खिरमन से है बिजली को बहुत लाग।
हाँ एक निगाहे-ग़लत-अंदाज़ इधर भी॥