क्योंकर यहाँ तुम्हारी तबीयत बहल गई।
इतनी ही ज़िंदगी हमें ऐ खिज़्र! खल गई॥

जब एक रोज़ जान का जाना ज़रूर है।
फिर फ़र्क क्या वह आज गई, ख्वाह कल गई॥

जब दम निकल गया ख़लिशे-ग़म भी मिट गई।
दिल में चुभी थी फाँस जो दिल से निकल गई॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *