उक़ाबी  शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर। निकले
सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़  में डूबकर निकले

हुए मदफ़ूने-दरिया  ज़ेरे-दरिया तैरने वाले
तमाँचे मौज के खाते थे जो बनकर गुहर निकले

ग़ुबारे-रहगुज़र हैं कीमिया पर नाज़  था जिनको
जबीनें ख़ाक पर रखते थे जो अक्सीरगर निकले

हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयामे-ज़िन्दगी लाया
ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वोह बेख़बर निकले

जहाँ में अहले-ईमाँ[16]सूरते-ख़ुर्शीद[17]जीते हैं
इधर डूबे उधर निकले , उधर डूबे इधर निकले

By shayar

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