वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझ को सिखा गया है जुनूँ
ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिब्रईल दे तो कहूँ

सितारा क्या मेरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ

हयात क्या है ख़याल ओ नज़र की मजज़ूबी
ख़ुदी की मौत है अँदेशा-हा-ए-गूना-गूँ

अजब मज़ा है मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी दे कर
वो चाहते हैं के मैं अपने आप में न रहूँ

ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ

सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
के आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गरदूँ

ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
के आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ

इलाज आतिश-ए-‘रूमी’ के सोज़ में है तेरा
तेरी खि़रद पे है ग़ालिब फ़रंगियों का फ़ुसूँ

उसी के फ़ैज़ से मेरी निगाह है रौशन
उसी के फ़ैज़ से मेरे सुबू में है जेहूँ

By shayar

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