इक जाम-ए-बोसीदा हस्ती और रूह अज़ल से सौदाई।
यह तंग लिबास न यूँ चढ़ता ख़ुद फाड़ के हमने पहना है॥
हिचकी में जो उखड़ी साँस अपनी घबरा के पुकारी याद उसकी।
“फिर जोड़ ले यह टूटा रिश्ता इक झटका और भी सहना है”॥
इक जाम-ए-बोसीदा हस्ती और रूह अज़ल से सौदाई।
यह तंग लिबास न यूँ चढ़ता ख़ुद फाड़ के हमने पहना है॥
हिचकी में जो उखड़ी साँस अपनी घबरा के पुकारी याद उसकी।
“फिर जोड़ ले यह टूटा रिश्ता इक झटका और भी सहना है”॥