जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं।
वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥

बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से।
चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥
… …. …

उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली।
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *