मायामोहिनी के बस भांवरी भरत ताहि मुक्ति दै के भवर बनाया निज अंग है।
नीचताइ नीचन सों वेग उदवेगन सों खल चितकार धुनि कलकल संग है॥
ताइ पैन न्यायो मल चन्द्रिका समान जल षीतल सरोज थलशुचि शुभगंगा है।
भूतल निवासिन केर कल्भश हरन करि देत पद अच्युत ये उछलि तरंगा हें॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *