किसी के ग़म की कहानी है जिन्दगी-ए-‘फ़ानी’।
ज़माना एक फ़साना है, मेरे नालों का।।
ख़ाके-‘फ़ानी’ की क़सम है, तुझे ऎ दस्ते-जुनूँ!
किससे सीखा तेरे ज़र्रों ने बयाबाँ होना?
चमन से रुख़सते ‘फ़ानी’ क़रीब है शायद।
कुछ अब की बूए-कफ़न दामने-बहार में है।।
किसकी कश्ती तहे-गरदाबे-फ़ना जा पहुँची?
यकबयक शोर जो ‘फ़ानी’ लबे-साहिल से उठा।।
आज रोज़े-विसाल ‘फ़ानी’ है।
मौत से हो रहे हैं नाज़ो-नियाज़।।