रफ़्तए-नज़र हो जा, सबसे बेख़बर हो जा।
खुल गया है राज़ अपना खुल न जाये राज़ उनका॥

फ़रेबे-जल्वा और कितना मुकम्मिल ऐ मुआ़ज़ल्लाह।

बड़ी मुश्किल से दिल को बज़्मे-आलम से उठा पाया॥

हाय क्या दिन है कि नक़्शे-सजदा है और सर नहीं।

याद है वोह दिन कि सर था और वबालेदोश था।

घर खै़र से तक़दीर ने वीराना बनाया।

सामाने-जुनू मुझ से फ़राहम न हुआ था॥

बालींपै  जब तुम आये तो आई वोह मौत भी।

जिस मौत के लिए मुझे जीना ज़रूर था॥

थी उनके सामने भी वही शाने-इज़्तराब।

दिल को भी अपनी वज़अ़पै कितना ग़रूर था।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *