चार दिन की जिन्दगी में चेत लो सचेत होय,
नर के समान देह फेर नहीं पाओगे।
दुष्टन के संग त्याग हरिजी के शरण त्याग,
माया के भाग ना तो अंत पछिताओगे।
काम क्रोध मोह लोभ इनके बस होवो नहीं,
आज हूँ तू मान ना तो जम से कुटावोगे।
द्विज महेन्द्र बार-बार भजले दशरथ कुमार,
ना तो जमदूत संग बरबस लिए जाओगे।
द्विज महेन्द्र सब नाशी होइहें बल-विभव तोर
जा दिन इस मेला से अकेला चलि जाओगे।