राम जी के विमुखी को सुखी कवन देखा कहीं,
राम जी के विमुखी होत दुखी सब ओर से।
शीत से अनल होय पावन भी सजल होय,
राम विमुख सुखी कहीं देखा नहीं गौर से।
सुंदर धवल धाम अंत आवत नहीं काम कछु,
सत्य हरि नाम यह अंत जाना ठौर से।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र नाथ हैं त्रिलोकी के,
तोड़त हैं धनुष अब देखो तू गौर से।