सावन में कन्हइया जरूर कहे आवन की
आयो नहीं कान्हा रात तड़पत बितायो री।
भादो कुवार अरू कातिक हूँ बीत गयी
अगहन ओ पूस माघ सरदी सतायो री।
फागुन में उठत पीर हीया नहीं धरत धीर,
चइत-बइसाख जेठ गरमी जलायो री।
आइल असाढ़ मास नैन को पसार रहौं
द्विज महेन्द्र आयो नहीं सावन रूलायो री।